पंजाब के मोहाली जिले के जीरकपुर में एक सनसनीखेज मामले ने समाज को झकझोर कर रख दिया। पादरी बजिंदर सिंह, जो अपने कथित चमत्कारों और धार्मिक प्रभाव के लिए जाने जाते थे, को एक महिला के साथ दुष्कर्म के मामले में मोहाली की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह मामला 2018 का है, जब एक महिला ने बजिंदर पर यौन शोषण और दुष्कर्म का आरोप लगाया था। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और अब वह पटियाला जेल में अपनी सजा काट रहे हैं। यह घटना न केवल एक अपराध की कहानी है, बल्कि धार्मिक शक्ति के दुरुपयोग और पीड़ितों की न्याय की लड़ाई का प्रतीक भी बन गई है।
मामले की शुरुआत और कानूनी प्रक्रिया
2018 में जीरकपुर पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर बजिंदर सिंह और छह अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि बजिंदर ने चमत्कार के नाम पर उसका यौन शोषण किया और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कर उसे ब्लैकमेल किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (दुष्कर्म), 420 (धोखाधड़ी), और 354 (महिला की लज्जा भंग करना) जैसी गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा चलाया गया। सुनवाई के दौरान बजिंदर के वकील ने कई बार बचाव की कोशिश की, जिसमें उनकी बीमारी का हवाला देकर पेशी से छूट की मांग भी शामिल थी। हालांकि, 28 मार्च को कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया और 31 मार्च को उम्रकैद की सजा सुनाई।
पहले भी विवादों में रहे बजिंदर
बजिंदर सिंह का विवादों से पुराना नाता रहा है। जुलाई 2018 में उन्हें दिल्ली हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था, जब वह लंदन भागने की कोशिश कर रहे थे। बाद में उन्हें जमानत मिल गई, लेकिन यह मामला उनके पीछे लगा रहा। इसके अलावा, फरवरी 2025 में उनका एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह एक महिला के साथ मारपीट करते नजर आए। इस घटना ने लोगों में गुस्सा भड़का दिया और उनके खिलाफ एक और शिकायत दर्ज हुई।
पीड़िता की जीत और सुरक्षा की मांग
सजा के ऐलान के बाद पीड़िता ने खुशी जताई और इसे अपनी और उन सभी लोगों की जीत बताया, जो बजिंदर के प्रभाव में फंसे थे। उन्होंने बजिंदर को “साइको” करार देते हुए कहा कि वह जेल से बाहर आए तो फिर अपराध करेंगे। पीड़िता ने पंजाब के डीजीपी से सुरक्षा की मांग की, यह कहते हुए कि उन्हें और उनके पति को खतरा हो सकता है।
समाज पर प्रभाव
बजिंदर सिंह जालंधर के “चर्च ऑफ ग्लोरी एंड विजडम” के संचालक थे और अपने चमत्कारों के लिए चर्चित थे। लेकिन इस मामले ने धार्मिक नेताओं के प्रभाव और उनके द्वारा शक्ति के दुरुपयोग पर सवाल खड़े किए हैं। यह फैसला पीड़िताओं को न्याय की उम्मीद देता है और समाज में ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत बढ़ाता है। यह एक सबक है कि कानून के सामने कोई भी अछूता नहीं है।